Jamaat-E-Islami: जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश की एक कट्टरपंथी पार्टी है, जिस पर कुछ दिनों पहले शेख हसीना सरकार ने बैन लगा दिया था। शेख हसीना के सत्ता छोड़ने के बाद, बांग्लादेश की नई सरकार में अब जमात-ए-इस्लामी की भी अहम भूमिका हो सकती है।
कट्टरपंथ और हिंसा की कहानी
बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी और उसकी स्टूडेंट विंग इस्लामी छात्र शिबिर ने हिंसक विरोध प्रदर्शन को भड़काने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस हिंसा ने प्रधानमंत्री शेख हसीना को सत्ता छोड़ने पर मजबूर कर दिया। बांग्लादेश की मौजूदा स्थिति के लिए जमात-ए-इस्लामी काफी हद तक जिम्मेदार मानी जाती है।
इतिहास और विचारधारा
जमात-ए-इस्लामी पार्टी का इतिहास पाकिस्तान से बांग्लादेश की आजादी का विरोध करने का रहा है। 1971 में मुक्ति संग्राम के दौरान इस पार्टी ने पाकिस्तानी सैनिकों का समर्थन किया था, जिसके चलते बांग्लादेश सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया था।
हिंदुओं पर हमले
जमात-ए-इस्लामी और उसकी स्टूडेंट विंग इस्लामी छात्र शिबिर हमेशा से बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा करती रही है। एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट और बांग्लादेश के गैर सरकारी संगठनों के अनुसार, 2013 से 2022 तक हिंदुओं पर 3600 से अधिक हमले हुए हैं, जिनमें जमात-ए-इस्लामी की अहम भूमिका रही है।
भविष्य की संभावनाएं
शेख हसीना के जाने के बाद, बांग्लादेश की नई सरकार में जमात-ए-इस्लामी की भूमिका बढ़ सकती है। इस स्थिति में बांग्लादेश के राजनीतिक परिदृश्य और धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति पर नजर रखना महत्वपूर्ण होगा।