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मणिपुर हिंसा: 23 हजार दू मैतेई चाहते हैं ST दर्जा, भड़के ईसाई आदिवासी, लोगों ने डरकर छोड़े अपने घर

मणिपुर हिंसा: CRPF कमांडो और टैक्स असिस्टेंट की शहादत, जनजाति बनाम हिन्दू विवाद के बीच 54 मौतें और 100 से अधिक घायल, 23 हजार लोगों को रेस्क्यू किया गया! भास्कर एक्सप्लेनर से जानेंगे ये सब बातें, जो आपको नहीं पता होंगी। क्या हैं इस विवाद के पीछे के मुद्दे, कौन-से आरक्षण के चक्कर में आपस में मारकाट कर रहे मणिपुरी लोग, और क्यों हैं कुकी और नागा जनजातियां बीजेपी सरकार और सीएम से नाराज?”

रहे मणिपुरी लोग, और क्यों हैं कुकी और नागा जनजातियां बीजेपी सरकार और सीएम से नाराज?”

मणिपुर एक क्रिकेट स्टेडियम की तरह है। इसमें इम्फाल घाटी पिच की तरह बिल्कुल बीच में है। ये पूरे प्रदेश का 10% हिस्सा है, जिसमें प्रदेश की 57% आबादी रहती है। बाकी चारों तरफ 90% हिस्से में पहाड़ी इलाके हैं, जहां प्रदेश की 42% आबादी रहती है। इम्फाल घाटी वाले इलाके में मैतेई समुदाय का दबदबा है। ये ज्यादातर हिंदू होते हैं। मणिपुर की कुल आबादी में इनकी हिस्सेदारी करीब 53% है। मणिपुर के कुल 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई समुदाय से हैं। पहाड़ी इलाकों में 33 मान्यता प्राप्त जनजातियां रहती हैं, जिनमें मुख्य रूप से नागा और कुकी जनजाति हैं। ये दोनों जनजातियां मुख्य रूप से ईसाई हैं। मणिपुर के कुल 60 विधायकों में से 20 विधायक जनजातियों से हैं। मणिपुर में करीब 8% मुस्लिम और करीब 8% सनमही समुदाय के लोग हैं। घाटी और पहाड़ी के इस डिवाइड की वजह से मणिपुर में कई तरह की समस्याएं पैदा होती हैं। भारतीय संविधान की धारा 371C के तहत मणिपुर की पहाड़ी जनजातियों को स्पेशल कॉन्स्टिट्यूशनल प्रिविलेज मिले हैं, जो मैतेई समुदाय को नहीं मिले। ‘लैंड रिफॉर्म एक्ट’ की वजह से मैतेई समुदाय पहाड़ी इलाकों में जमीन खरीदकर सेटल नहीं हो सकते। जबकि जनजातियों के पास पहाड़ी इलाके से घाटी में आकर बसने पर कोई रोक नहीं है। इससे दोनों समुदायों में खाई बढ़ती जा रही है। अंदर ही अंदर सुलग रही थी आग मणिपुर के चुरचांदपुर में 3 मई को भड़की हिंसा की आग पिछले कई महीनों से सुलग रही थी। मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह की सरकार का कहना है कि आदिवासी समुदाय के लोग संरक्षित जंगलों और वन अभयारण्य में गैरकानूनी कब्जा करके अफीम की खेती कर रहे हैं। ये कब्जे हटाने के लिए सरकार मणिपुर फॉरेस्ट रूल 2021 के तहत फॉरेस्ट लैंड पर किसी तरह के अतिक्रमण को हटाने के लिए एक ड्राइव चला रही है। आदिवासियों का कहना है कि ये उनकी पैतृक जमीन है। उन्होंने अतिक्रमण नहीं किया, बल्कि सालों से वहां रहते आ रहे हैं। सरकार की इस ड्राइव को आदिवासियों ने अपनी पैतृक जमीन से हटाने की तरह पेश किया। जिससे आक्रोश फैला। विरोध करने पर राज्य सरकार ने इन इलाकों में धारा 144 लगाकर प्रदर्शन करने पर पाबंदी लगा दी। नतीजा यह हुआ कि कुकी समुदाय सबसे बड़े जनजातीय संगठन ने कुकी इनपी ने सरकार के खिलाफ बड़ी रैली निकालने का ऐलान कर दिया। इस रैली के दौरान कांगपोकपी नाम की जगह पुलिस और रैली में शामिल भीड़ के बीच टकराव हुआ। इसमें पांच प्रदर्शनकारियों समेत पांच पुलिसवाले भी घायल हो गए। इस बीच एक और बड़ा घटनाक्रम हुआ। दरअसल, कुकी जनजाति के कई संगठन 2005 तक सैन्य विद्रोह शामिल रहे हैं। मनमोहन सिंह सरकार के समय, 2008 में तकरीबन सभी कुकी विद्रोही संगठनों से केंद्र सरकार ने उनके खिलाफ सैन्य कार्रवाई रोकने के लिए सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन यानी SoS एग्रीमेंट किया। इसका मकसद राजनीतिक बातचीत को बढ़ावा देना था। तब समय-समय पर इस समझौते का कार्यकाल बढ़ाया जाता रहा। लेकिन इसी साल 10 मार्च को मणिपुर सरकार कुकी समुदाय के दो संगठनों के लिए इस समझौते से पीछे हट गई। ये संगठन हैं जोमी रेवुलुशनरी आर्मी यानी ZRA और कुकी नेशनल आर्मी यानी KNA। ये दोनों संगठन हथियारबंद हैं। हिंसा की चिंगारी कैसे भड़की मैतेई ट्राइब यूनियन पिछले एक दशक से मैतेई को आदिवासी दर्जा देने की मांग कर रही है। इसी सिलसिले में उन्होंने मणिपुर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इस पर सुनवाई करते हुए मणिपुर हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से 19 अप्रैल को 10 साल पुरानी केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय की सिफारिश प्रस्तुत करने के लिए कहा था। इस सिफारिश में मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने के लिए कहा गया है। इससे आदिवासी भड़क गए।

तनाव की शुरुआत चुराचंदपुर जिले से हुई, जो राजधानी इम्फाल के दक्षिण में करीब 63 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस जिले में कुकी आदिवासी ज्यादा हैं। गवर्नमेंट लैंड सर्वे के विरोध में 28 अप्रैल को द इंडिजेनस ट्राइबल लीडर्स फोरम ने चुराचंदपुर में 8 घंटे बंद का ऐलान किया था। इसकी वजह से मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को अपना पहले से प्रस्तावित कार्यक्रम रद्द करना पड़ा।

28 अप्रैल को देर रात तक पुलिस और प्रदर्शनकारियों में झड़प होती रही। उसी रात तुइबोंग एरिया में उपद्रवियों ने फॉरेस्ट रेंज ऑफिस को आग के हवाले कर दिया। 27-28 अप्रैल की हिंसा में मुख्य तौर पर पुलिस और कुकी आदिवासी आमने सामने थे।

3 मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर ने ‘आदिवासी एकता मार्च’ निकाला। ये मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा देने के विरोध में था। स्थिति बिगड़ गई और इसने जातीय संघर्ष का रूप ले लिया। एक तरफ मेइती समुदाय के लोग तो दूसरी तरफ कुकी और नागा समुदाय के लोग। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक इस हिंसा में अब तक 54 लोगों की मौत हो चुकी है।

मणिपुर की राजधानी इम्फाल में दंगाइयों से निपटने के लिए सुरक्षा बलों ने आंसू गैस के गोले छोड़े। (तस्वीरः AFP)
       मणिपुर की राजधानी इम्फाल में दंगाइयों से निपटने के लिए सुरक्षा बलों ने आंसू गैस के गोले छोड़े। 

 

मणिपुर की कानून व्यवस्था को केंद्र ने अपने हाथों में लिया

हिंसा भड़कने के बाद केंद्र सरकार ने भाजपा की चुनी हुई सरकार से कानून व्यवस्था को अपने हाथ में ले लिया। ये कितनी बड़ी बात है, इसका अंदाज एक उदाहरण से लगाते हैं। सोचिए कभी पश्चिम बंगाल में दंगे हो जाएं और केंद्र सरकार अनुच्छेद 355 का इस्तेमाल करके राज्य में कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी खुद ले ले।

ऐसी हालात में पुलिस और प्रशासन की कमान केंद्र सरकार के हाथों में आ जाएगी। सोचिए कभी ऐसा हो जाए तो ममता बनर्जी और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस कैसे रिएक्ट करेंगे?

यह अनुच्छेद किसी भी राज्य में अनुच्छेद 356 लगाने का आधार भी माना जाता है। 355 यानी राज्य की कानून व्यवस्था फेल हुई और केंद्र ने इसे अपने हाथों में ले लिया। वहीं 356 यानी राज्य सरकार को बर्खास्त करना। हालांकि केंद्र ने अभी राज्य सरकार को बर्खास्त नहीं किया है और फिलहाल इसकी उम्मीद भी नहीं है।

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